इतिहास से ज्ञात होता है कि भारत और मध्य एशिया के संबंध बहुत पुराने हैं। तब से लेकर आज तक ये संबंध निरन्तर विकसित हो रहे हैं। भारत और उज़्बेकिस्तान के बीच राजनीतिक, आर्थिक, कूटनीतिक, सांस्कृतिक और साहित्यिक संबंध हमेशा से रहे हैं। उज़्बेकिस्तान के अधिकतर निवासी हिंदी भाषा और भारतीय लेखकों से अच्छी तरह परिचित है। ताशकंद सरकारी प्राच्य विद्या संस्थान में दक्षिण एशियाई देशों की भाषाओं का विभाग है, जिसमें 10 से अधिक अध्यापक और अध्यापिकाएँ हिंदी, उर्दू भाषाएँ और भारत का साहित्य, इतिहास पढ़ाते हैं। इस विभाग में सौ से अधिक छात्र-छात्राएँ पढ़ते हैं। पढ़ने के साथ-साथ हिंदी, उर्दू भाषा और साहित्य से संबंधित विषयों पर शोध कार्य भी किया जाता है। साहित्य के प्रचार क्षेत्र में यह विभाग बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
भारत और उज़्बेकिस्तान की मित्रता की बहुमुख्य दिशाओं में से एक - हमारे साहित्यिक संबंध हैं। साहित्यिक संबंधों के बारे में एक कवि ने कहा था कि वे ऊँचे सफ़ेद बालों वाले हिमालय को पार कर सकते हैं, दिल की दहलीज़ पार करके, बाँहों के किवाड़ खोलकर बहुत बड़े फ़ासले को छोटा कर देते हैं। इन शब्दों का भड़कीला उदाहरण हैं - प्रसिद्ध भारतीय लेखक रवीन्द्रनाथ टैगोर और मशहूर उज़्बेक कवि अ. नवाई की रचनाएँ जो न सिर्फ़ पूरे एशिया में बल्कि संसार भर में भी प्रसिद्ध हो गयी हैं।
सन् 1991 से जब उज़्बेकिस्तान स्वतंत्र राष्ट्र बन गया है, दोनों देशों के साहित्यिक संबंधों को और विस्तार देने के नये रास्ते और नयी संभावनाएँ खुलती जा रही हैं। इस दिशा में ताशकन्द में भारतीय राजदूतावास और भारत का सांस्कृतिक केंद्र महत्त्वपूर्ण योजनाएँ अमल में ला रहे हैं।
आधुनिक काल में उज़्बेकिस्तान में भारतीय साहित्य से नज़दीकी परिचय प्राप्त करने और अध्ययन करने का काम 1925 से ही शुरू हुआ था, जब यहाँ रवींद्रनाथ टैगोर की कहानियाँ और कविताएँ उज़्बेकी और रूसी भाषाओं में प्रकाशित की गयी थीं।
सन् 1940-1960 वर्षों के दौरान प्रेमचन्द, कृष्ण चन्दर, मुहम्मद इकबाल, मिर्ज़ा ग़ालिब, ख्वाजा अहमद अब्बास, अली सरदार जाफ़री, फ़ैज़ अहमद फैज़, अमृता प्रीतम, यशपाल की रचनाएँ प्रकाशित की गयीं।
1970-1980 के दौरान हिंदी, उर्दू, बंगाली, तमिल, पंजाबी साहित्य की रचनाओं का अनुवाद किया गया है। इस के साथ-साथ यह उल्लेखनीय है कि 20 सालों के दौरान (1960-1980) क़रीब 25 भारतीय लेखकों की रचनाओं का अनुवाद उज़्बेकी में हो चुका है।
इनमें प्रीतम सिंह साफ़िर की “मेरे ताशकन्दवाले दोस्त को” नामक कविता, अमृता प्रीतम का “काला गुलाब” नामक कविता-संग्रह है। 1978 में ताशकन्द में भारत के 30 लेखकों की कहानियाँ उज़्बेकी में ही एक सुन्दर पुस्तक के रूप में प्रकाशित की गयी। उसमें प्रेमचन्द, अमृतलाल नागर, भगवतीचरण वर्मा, विष्णु प्रभाकर, यशपाल, उपेंद्रनाथ अश्क, चंद्रधर शर्मा गुलेरी, कृष्ण चन्दर, ख़्वाजा अहमद अब्बास, राजेन्द्र सिंह बेदी, इस्मत चुगताई, महेन्द्रनाथ, शरतचन्द्र चट्टोपाध्याय, ताराशंकर बंद्योपाध्याय (बंगाली), अमृता प्रीतम, गुर्दावसिंह रूपाना (पंजाबी), पन्नलाल पटेल (गुजरात), उपेन्द्र प्रसाद मोहंती (ओरिया), खानदेकर, देशपांडे (मराठी), बोम्मी रेद्दमाली सुर्यराआ, इच्छापुररू जगन्नाथरा (तेलुगू), सोमू, जानकीरामन (तमिल), केशव देव, सरस्वती अम्मा (मलयालम), अश्वथ नरायण राओ (कन्नड़), बसवाराजा कत्तोमाली (कन्नड़) हैं।
प्रसिद्ध पंजाबी कवयित्री अमृता प्रीतम कई बार उज़्बेकिस्तान आई थीं। उज़्बेक कवयित्री ज़ुल्फ़िया से उनकी दोस्ती सालों पुरानी है। भारत वापस आने के बाद अमृता प्रीतम ने “आँसुओं का रिश्ता”, “ख़बिदा हुसीना” और “उज़्बेकिस्तान की ज़ुल्फ़” नामक निबंध लिखे हैं और 1962 में एक पुस्तक में उन्हें सम्मिलित करके “अतीत की परछाइयाँ” के नाम से प्रकाशित किया है।
अपनी ओर से उज़्बेकिस्तान में अमृता प्रीतम की कविताएँ उज़्बेकी और रूसी में उज़्बेक पाठकों को प्रदान की गयी है। मशहूर उर्दू कवि मिर्ज़ा ग़ालिब की ग़ज़लों की किताब ने पाठकों के दिलों को मोह लिया है।
प्रसिद्ध उज़्बेक कवि और लेखक गफ़ूर गुलाम, हमीद गुलाम, अस्कद मुहतार, हमीद अलीमजान, मिरतेमीर, साइदा ज़ुनुनोवा और एरकीन वहीदोव आदि बहुत से कवियों ने भारत के साहित्य के विषय पर बहुत कविताएँ, लेख, निबंध, रेखाचित्र लिखे हैं। उदाहरण के लिए गफ़ूर गुलाम ने अपने लेख में रवींद्रनाथ टैगोर, प्रेमचन्द, कृष्ण चन्दर, म. गुप्ता जैसे बड़े लेखकों के नामों और उनकी रचनाओं का उल्लेख करके एक बड़ा निबंध तैयार किया था। उन्होंने मशहूर कवि बेदिल को अपना गुरु मानकर उनकी कविताओं का अनुवाद किया है।
दूसरा मशहूर उज़्बेक कवि ऊगुन ने (1970-1980) तीन नाटक लिखे : 'बेरूनी’, ‘अबु-अली-इब्न सीना’ और ‘ज़ेबुनिस्सो’। उन्होंने लिखा था कि इन रचनाओं से दोनों देशों के साहित्यिक संबंधों का लंबा और पुराना इतिहास नज़र आता है। इसके अलावा ऊगुन ने भारत के विषय पर 'हिमालय के ऊपर’, ‘बुलबुल’, 'तारा चौधरी’ नामक कविताएँ भी लिखीं।
आप के सामने कई भारतीय लेखकों और कवियों के केवल नाम लिये गये हैं। इनके माध्यम से मैंने समकालीन भारतीय साहित्य की एक दिशा का एक आधा-अधूरा खाका ही सही, आपके सामने उभारने की कोशिश की है। स्पष्ट है कि इस सूची के बाहर भी ऐसे कवि और लेखक मौजूद हैं, जो सार्थक और महत्त्वपूर्ण दोनों हैं।
उज़्बेकिस्तान में भारतीय साहित्य के विकास की समस्याओं को न सिर्फ़ अलग-अलग कालों में बल्कि अनेक स्तरों और दिशाओं में विभाजित करके विश्लेषित करना अवश्यक है, क्योंकि यह विषय बहुपक्षीय, बहुक्षेत्रीय, बहुस्तरीय है :
1. रचनाओं का अनुवाद और प्रकाशन करना
2. वैज्ञानिक विश्लेषण
3. हस्तलिखित ग्रंथ
4. साहित्यिक सम्मेलन
5. साहित्यिक पर्वों का आयोजन और प्रतिनिधि मंडलों का आदान प्रदान
6. शिक्षा संस्थाओं में साहित्य का अध्ययन करना
इनमें से मैं सिर्फ़ दो दिशाओं पर ध्यान देना चाहती हूँ। भारतीय साहित्य पर अध्ययन का काम उज़्बेकिस्तान में 1947 से शुरू हुआ। तब सबसे पहले रवींद्रनाथ टैगोर की रचना पर एक निबंध प्रकाशित किया गया और ताशकन्द विश्वविद्यालय की पूर्वी फ़ेकल्टी के भारतीय भाषाओं के विभाग में भारतीय लेखक कृष्ण चन्दर की रचना पर कई निबंध प्रकाशित हुए।
उर्दू साहित्य के प्रगतिशील कवियों की काव्य रचना के विषय पर बड़ा काम भी किया गया था और 'अली सरदार ज़फ़री का काव्य-लेखन' नामक पुस्तक प्रकाशित की गयी थी। प्रगतिशील उर्दू कवि और लेखक ख़्वाजा अहमद अब्बास के लेखन-कार्य पर दो पुस्तकें उज़्बेकी में तैयार की गयी थी। भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेनेवाली महिला लेखिकाओं में से सुभद्रा कुमारी चौहान, उनके जीवन पर शोधपरक कार्य भी पूरा किया गया है। नवीन सामाजिक यथार्थवादी उपन्यासकारों में अमृतलाल नागर का विशिष्ट स्थान है। उनका 'बूंद और समुद्र’ नामक उपन्यास, जो हिंदी के सर्वाधिक सफल उपन्यासों में स्थान पाने का अधिकारी है, ताशकन्द में उज़्बेक विद्वानों द्वारा विश्लेषित किया गया है। हिंदी साहित्य में प्रगतिशील आंदोलन के इतिहास से संबंधित लेखकों की रचनाओं पर भी यहाँ काम किया गया था, विशेषकर हज़ारी प्रसाद द्विवेदी और प्रेमचन्द के लेखन-कार्य पर। हिंदी के बड़े लेखक, उपन्यासकार यशपाल के उपन्यासों का अध्ययन करके डॉ. बेकाएवा ने भी एक पुस्तक लिखी है।
उर्दू साहित्य के कहानीकार नाटककार, सआदत हसन मंटो की कहानियों का अनुवाद किया गया है और इस विषय पर कई निबन्ध भी लिखे गए हैं। उदाहरण के लिये गफ़ूर गुलाम ने (1903-1966) अपने निबंधों में लिखा है कि भारतीय साहित्य ने अपने महान सुपुत्रों की रचनाओं से संसार की सभ्यता में बड़ा योगदान दिया है, लेकिन भारतीय साहित्य, यह केवल एक राष्ट्र की संपत्ति नहीं है, बल्कि समस्त विश्व की मूल्यवान धरोहर है।
उज़्बेक विद्वानों के शोधपरक कार्य में समकालीन भारतीय साहित्य के प्रसिद्ध प्रतिनिधि मुहम्मद इकबाल, केदारनाथ सिंह, मुक्तिबोध, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना, अशोक वाजपेयी, अली सरदार जाफ़री की जीवनी और रचनाओं पर ध्यान दिया जाता है और दक्षिण एशियाई देशों की भाषाओं के विभाग साहित्यिक प्रोग्राम में सम्मिलित हैं।
इसके अतिरिक्त कई विशेष छोटे कोर्स भी पढ़ाए जाते हैं ‘उर्दू शायरी', ‘उज़्बेकिस्तान और भारत के साहित्यिक संबंध’, एम.ए. में नये कोर्स भी पढ़ाए जाते हैं : ‘समकालीन भारतीय साहित्य में नयी धाराएँ’, ‘विदेशों से भारत के साहित्यिक संबंध’, ‘साहित्य-शास्त्र’, ‘पंजाबी साहित्य’, ‘बंगाली साहित्य’, ‘दक्षिण भारत का साहित्य’।
‘भारत और उज़्बेकिस्तान के साहित्यिक संबंध’ विषय के अध्ययन और अध्यापन के काम में जहाँ हम सफल हुए हैं, वहाँ इस कार्य में बहुत-सी कमियाँ, कठिनाइयाँ भी हैं। इन कमियों को हल करने के लिये एक-दो प्रस्ताव रखना आवश्यक लगता है।
1. उज़्बेक विशेषज्ञों व अध्यापकों को भारत में होनेवाले साहित्यिक सम्मेलनों में भाग लेने का अवसर देना अति आवश्यक है।
2. भारतीय साहित्य पर नये वैज्ञानिक विश्लेषणों से परिचय प्राप्त करने के लिये, साहित्यिक पाठ्यक्रम को तैयार करने के उद्देश्य से, भारतीय विशेषज्ञों से विचार विनिमय करने, परामर्श करने के लक्ष्य से, नयी पाठ्यपुस्तकों को तैयार करने के लिये साहित्य अकादमी जैसी संस्थाओं तथा विश्वविद्यालयों में जाकर कार्य करने की सुविधा होनी चाहिये।
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