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रचनाः प्रो. मृदुला जुगरान
तिथिः 05 जून 2021
श्रेणीः  कविता

रचना परिचयः

कवयित्री ने प्रस्तुत कविता में कोरोनावायरस की विश्वव्यापी विभीषिका का मर्मस्पर्शी वर्णन किया है।

कोरोना विभीषिका

- प्रो. मृदुला जुगरान

क्लांत हो गई धरती भी मानव को पाठ पढ़ाते,

मुल्कों के काले कर्मों की कालिख धोते-धोते।

प्रथम शस्त्र की ज्वाला में राष्ट्रों ने खुद को झोंका,

फिर इच्छा की काल नागिनी ने घर-घर को फूँका।

युद्ध-युद्ध से शस्त्र-शस्त्र से रक्त बहा धरती पर,

धरती ने कब चाहा मुझको दो काली का खप्पर?

धरती ने मानव उपजाया, और अंक में लेकर,

पुचकारा सहलाया उसको, आदिकाल से लेकर।

खेत दिये खलिहान दिये वे शस्यश्यामला बनकर,

ऊँचे पर्वत झरती नदियाँ, तृषा बुझायी सत्त्वर।

फल से नमित डालियों ने मानव! तेरा सत्कार किया,

तेरे हित धरती ने सब कुछ भार स्वयं पर वहन किया।

किंतु सभ्यता की तूने, झूठी परिभाषा रच डाली,

उठा शस्त्र तलवार म्यान से ध्वंस धरा ही कर डाली!

ले शस्त्रों की होड़ रचे फिर अणु-परमाणु सरीखे,

हिरोशिमा नागासाकी के घाव न अब तक सूखे?

नाश और विध्वंस तुझे अब सुख के कारक लगते,

नित-नूतन आविष्कारों से अटे-पटे से रहते।

सुना! सभ्यता के विनाश का, आगे जो फल होगा,

जैविक हथियारों की जद में घर घर मनुज सड़ेगा।

लाशों का अंबार लगेगा रुदन करेगी धरती,

तिल-तिल मरते प्राणी होंगे आर्तनाद हो करती।

अनगिन आधि-व्याधिययाँ आकर तुम पर वार करेंगी,

सब कुछ होगा पास तुम्हारे, सांस न लेने देंगी।

कुपित प्रकृति के देख तमाशे, जो बोया धरती पर,

कोरोना बनकर फूटेगा धरती पर यह मंज़र!!

राष्ट्रो! तुम क्या समझ सकोगे इस धरती की पीड़ा?

एक रक्त एक धमनी में है, गुंथा विश्व यह सारा।

प्रिय भारत! सुंदर भारत ही, ऐसा देश बनेगा,

विश्वगुरु बन रम्य कल्पना का श्रृंगार‌ बनेगा।

उसने धरती पर सदैव ही मानव को सींचा है,

शांति दूत बन सकल विश्व को, मोहित कर खींचा है

मनुज पुत्र हो अगर, विश्व में फैलो छाया बनकर!

जीत सको तो हृदय जीत लो, एक मसीहा बनकर।।

-prof.mridulajugran@gmail.com

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