ई कठिन कराल कोरोना काल में तो भैया हम पर बहुत ही इमोशनल अत्याचार हुए हैं। भाई, ये कोरोना ना हुआ हमारी नाज़ुक सरकारी जान की आफ़त ही हो गई। अमा, न जाने कौन कमबख्त चोमू बवंडर था, जो आलू, बैंगन, पनीर, मशरूम, चमचम, रसगुल्ला, दही-भल्ला जैसे उत्तम भोज्य पदार्थ छोड़कर चमगादड़ को चखने गया था!! चमगादड़ से भैया अईसन वायरस कूदकर आदमजात की देह में आया कि आज सात महीने हो गए आदमी घर के अंदर लॉकडाउन में घुट-घुट कर जी रहा है ... बताइये!!तो भैया, देश में ई कोरोना का कराल काल मार्च से ही शुरू हुआ, तो हमारी व्यथा-कथा भी मार्च से शुरू होती है। जिस दिन हमारे मोदी जी ने देश में लॉकडाउन घोषित किया था, उस दिन से आज तक कोई दिन ऐसा दिन नहीं गया, जब हमने योग-प्राणायाम न किया हो और दिन में नीम्बू-शहद का गुनगुना पानी और रात में च्यवनप्राश के साथ हल्दी वाला दूध न पिया हो। अंकुरित अनाज, कच्चा लहसुन, पुरानी अदरक, मामेरा बादाम, काबुली अंजीर, अरबी खजूर, विलायती खुरमानी, अफ़गानी खारक, देशी मुनक्का न खाया हो और काली-मिर्च, सौंठ-पिपली का कड़क हर्बल काढ़ा न पिया हो, मुँह में लोंग और काली मिर्च न दबाई हो और सोते बखत नाक में षड़्बिंदू का तेल न डाला हो। आप सोच रहे हैं, बहुत हो गया भैया यह तो ... अरे भाई साब, यहीं तक नहीं न रुके हैं हम .... बहुत दूर तक निकल गए हम साहब इस कलयुगी पिंड में स्थित प्राण की रक्षा करने और देश को राष्ट्रीय क्षति से बचाने हेतु .... !!
मार्च से ही हम घर पर वैसे दुबक ही गए, जैसे कोई चूहा नागराज को देखकर अपने बिल में दुबक जाता है या कोई उधारी वाला साहूकार को देखकर अपनी दड़बे में घुस जाता है। पर जब अप्रैल आते-आते डर कुछ बढ़ गया, तब हमने ऊपर वर्णित देशी टोटकों के साथ कुछ और एड-ऑन भी जोड़ दिए। कभी पानी में नमक डालकर, तो कभी आयोडिन या फिटकरी डालकर शामो-सहर गरारे किए । शुभचिंतकों की फ़्री की प्रेरणा और प्रोत्साहन से गिलोय बटी, लक्ष्मी विलास रस, मकरध्वज की गोलियाँ, तुलसी की गोलियाँ, नीम की गोलियाँ जमकर खाईं। होम्योपैथिक दवा आर्सेनिक एल्बो, कैम्फ़र की गोलियाँ, अग्रेंज़ी दवाई एचसीक्यूसी + एज़िथ्रल + आइवरमेक्टिन सब कुछ फाँके जा रहे थे और पत्नी बच्चों को भी ठुँसवाए जा रहे थे। विटामिन सी की चूषक गोलियाँ पूरे घर में मुफ़्त सरकारी राशन की माफ़िक बँटवाँ दी गई और बच्चे-बूढ़े सारे पेपरमिंट की गोलियों की तरह इसे चूस रहे थे।
अरे, हँस रहे हैं आप...!! ये अभूतपूर्व अंतरराष्ट्रीय संकट आन पड़ा है भाई!! अभी मई महीने का भी पूरा दुखड़ा भी सुन लीजिए जनाब...!! मई नया-नया लगा था कि व्हाट्सएप विश्वविद्यालय पर एक दिन मेसेज आया कि यह वायरस ठंडी जगह से आया है और ठंडे देशों में ज़्यादा फैल रहा है, इसलिए सब कुछ गर्म खाओ, गर्म पीओ... बस यही ‘गर्म’ लफ़्ज़ ही कोरोना का दुश्मन है.... ठंडी चीज़ खाओगे, तो वायरस दुश्मन-सा देह में जम जाएगा। अब क्या था भैया!! ए.सी., फ़्रीज में हमने अलीगढ़ी ताला ठोंक दिया और दिन भर फूँक-फूँक कर चाय की माफ़िक गर्म पानी में तुलसी पत्ता छोंक-छोंक कर पीते रहे। मई की गर्मी में दिन भर गर्म चाय, गर्म कॉफ़ी, गर्म सूप, गर्म दूध, चख-चख कर हमारी रसना भी सन्नाटे में आ गई। एक दिन पत्नी ने सर्व-विषाणु-रोधी-ऊष्म-जल के स्थान पर गलती से ठंडा पानी क्या पिला दिया, गुस्से में फ़ेसबुक और व्ह्वाट्सएप दोनों पर ब्लॉक कर दिया उसे। किसी ने फिर ज्ञान दिया भईया कि “भाप सप्ताह मनाओ और कोरोना को भगाओ”... बस एक सप्ताह तक दिन में दो बार भाप लो और कोरोना पतली गली से निकल लेगा.... इस महाघोषणा के बाद दिन में चार बार अजवाइन-कलोंजी की भाप लेते रहे पूरे महीने। अब सबसे कहिएगा नहीं, एक दिन किचन में पड़े एक कलमुंहे भगोने में भाप लेते हुए, दिमागी भरम के मारे, पानी में हरे रंग के कोरोना वायरस की हँसती हुई-सी आकृति दिख गई। डर के मारे मुँह भगोने में थोड़ा ज़्यादा अंदर घुस गया। नाक में उबले छोले से छाले पड़ गए और यह सूजकर लाल टमाटर-सी दिखने लगी। बहुत दुर्गति हुई है भईया इस विकट काल में हमारी....॥ बीच मई में किसी वाट्सएपिया वैज्ञानिक ने फिर घोषणा कर दी कि यह वायरस भारत की विकट गर्मी में टिक नहीं पाएगा, पर मई में जब बीमारी का ग्राफ़ सबसे ऊपर चढ़ गया, तब जाकर हमारा इस गर्मी-वर्मी के हिसाब किताब से भरम टूटा है साहब .... !!
अब किसी तरह मई तो राम-राम करते निकल गई भाईजान। जून आते दुनिया में कोरोना के आंकड़े देखकर हमारी तो जान हलक पर आ चुकी थी। कई बार सपने में प्लास्टिक से लिपटा अपना पार्थिव शरीर दिख जाता और हम चौंककर बिस्तर से ही गिर पड़ते थे। तभी किसी रायचंद सलाहवाले ने बता दिया कि भईया वायरस से बचना है, तो सुबह उठकर, सबसे पहले कपालभाती और भस्त्रिका प्राणायाम करो। इससे गले और फेफड़े में वो वाइब्रेशन वाली गर्मी पैदा होती है, जिससे वायरस क्या, वायरस के पिता की भी औकात नहीं कि आपकी देह में क्षण भर टिक पाए। इसके बाद हमने यूट्युब से वीडियो छाँटकर चटाई बिछाई और किसी अघोरी बाबा की तरह अपनी सांसों की दहाड़-पछाड़ का ऐसा तांडव शुरू किया कि घर के बच्चे-बूढ़े तक इस फू-फास्स्स से दहशत में आ गए। आस-पड़ोस तक बात पहुँच गई कि आपके घर में रोज़ सुबह यह किस अजगर की विकराल फुफकार सुनाई देती है। फिर साब, श्रीमती जी ने बेलन हाथ में लेकर वो धमकियाँ लगाईं कि इस योगिक-सांस्कृतिक प्रक्रिया को भी सरकारी योजना की तरह बीच में ही रोकना पड़ा।
जुलाई आते-आते साबुन और सेनिटाइज़र से हाथ रगड़-रगड़कर हाथ की बची-खुची रेखाएँ भी घिस चुकी थीं। गिनकर दिन में 16 बार हाथ धोते थे और 66 बार 80% अल्कोहोल वाला सेनिटाइज़र घिसते थे। जिस दिन यह महान घोषणा हुई कि एन95 मास्क भी सुरक्षित नहीं है, उस दिन ऐसा लगा साब जैसे किसी वफ़ादार प्रेमिका ने ऐन मौके पर धोखा दे दिया हो। सारे मोहल्ले वाले जब 4-4 रुपये के सर्जिकल मास्क लगाकर घूम रहे थे, तब हम शान से एन95 मास्क लगाकर बाल्कनी में भी बैठ जाते थे। इस झटके से हम उबरे भी नहीं थे कि दूसरी दर्दनाक घोषणा कर दी गई कि कोरोना हवा से भी फैल सकता है। इसके बाद से तो साब हम पत्नी से भी मास्क लगाकर मिलने लगे। पार्टी, दावतें, शादी, भण्डारे में खाना बिलकुल बंद कर दिया। किसी ने बता दिया कि सब्ज़ी-भाजी से भी वायरस घर में घुस सकता है। इस दहशत में हम भैया जैसे ही सब्ज़ी लेकर आएँ, तत्काल उसे सेमी ऑटोमेटिक वाशिंग मशीन में एक चम्मच विनेगर डालकर 10 मिनट घुमा देते थे, इस चक्कर में कि सारे वायरस कमबख़्त इसमें चक्कर खा-खाकर ही मर जाएँगे।
बहुत दहशत में गुज़र रहा ये कोरोना काल साब। फ़ोन की कॉलर ट्युन वाले अलग से डराते रहे। कभी खाँसकर तो कभी बाहर न निकलने की धमकी देकर। इसी बीच अगस्त आ गया साब। रोज़ खबर आती रही कि आज वेक्सीन आएगी, कल वेक्सीन आएगी। जैसे चातक पानी की चाह में आकाश को ताकता रहता है, उसी प्रकार हम वेक्सीन का इंतज़ार करते रहे। इस बीच हमने कंबल में घुसे-घुसे ही 270 वेबिनार भी अटेंड कर लिए और अपने लेपटॉप के ई-झोले में ई-प्रतिभागिता के भर-भर फ़ोल्डर ई-प्रमाणपत्र जमा कर लिए। डंडे के डर से खुद तो बाहर नहीं निकले, पर घर में जमकर आटा और मोबाइल का डाटा चर-चरकर पेट कमरबंद की बालकनी से बाहर झाँकने लगा। थाली, ताली, घण्टा जमकर बजाया, दीपक भी जला लिया साब। कारोना माई के नाम पर एक दिन का सपरिवार उपवास भी कर लिया। एक बाबा से एंटी-कोरोना ताबीज़ भी ले ली। हैल्थ इंश्योरेंस और टर्म इंश्योरेंस भी करा लिया।
सच कहता हूँ साहब, जिस दिन पुतीन काका ने वेक्सीन बनाने की घोषणा की उस दिन मेरी आँखों से खुशी के आँसू निकल कर मेरे चार-लेयर वाले मास्क को गीला कर गए। मैंने इनकी मुस्कुराती फोटू को अपने मंदिर में सजाकर, रोली-चावल लगाकर पुतीन चालीसा पढ़ी और उनके ट्विटर हैंडल पर जाकर अपनी जवानी और बच्चों के बचपन की दुहाई देकर उनसे अपने लिए एक वेक्सीन सुरक्षित रखने की दरख्वास्त भी कर दी है। एक बात और जोड़ दिए रहे हैं साब। इसी बीच मुझे टीवी के विज्ञापनों का बहुत सहारा मिला और भारतीय होने का गर्व भी अनुभव हुआ, क्योंकि हमारी आत्मनिर्भर कंपनियाँ इस दौरान कोई ऐसा प्रोडक्ट नहीं बना रही हैं, जिससे इम्यूनिटी न बढ़ती हो। रिफ़ाइन ऑइल से लेकर प्लाईवुड, मसालों से लेकर वाटर प्यूरिफ़ायर… चाय, बेसन, सूजी, शेम्पु, शराब... हर चीज़ से रोग प्रतिरोधक क्षमता दनादन बढ़ाई जा रही है। बस अब एक विटामिन सी युक्त बनियान और आ जाए फेफड़ों की सुरक्षा के लिए... आज अपना दूधवाला भी पूछ रहा था कि कल से आपके लिए इम्यूनिटी बुस्टर दूध लाऊँ? मगर 10 रुपये प्रति लीटर ज़्यादा देने होंगे। मैंने पूछा “भैया ये कैसा दूध है?” तो बताने लगा “यह ऐसी गाय का दूध जिसे हम रोज़ नींबू और संतरा खिलाते हैं, ताकि दूध में विटामिन सी मिले। रोज़ सुबह उसे एक घंटा धूप में भी खड़ी रखते हैं, ताकि उसके दूध में विटामिन डी भी हो। साथ ही चारे के साथ पालक, तुलसी, गिलोय भी मिलाया जाता है।”
मैंने सोचा भाई, तू ही रह गया था... तू भी धो ले हाथ इस इम्यूनिटी की बहती गंगा में..!!
(नोट : इस व्यंग्य का उद्देश्य कोरोना महामारी की विभीषिका को कमतर करके आंकना नहीं है बल्कि मानवता के लिए उपस्थित इस कठिन समय को कुछ हास-परिहास के माध्यम से सरस करना मात्र है, जिससे हम जीवन की राह पुनः तलाश सकें।)
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